दूल्हों का बाज़ार

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रविवार की सुबह, अपने मिश्रा जी नहा-धो कर कहीं निकलने को तैयार थे। बहुत देर इंतज़ार करने के बाद जब मिश्राइन और उनकी बेटी मीना तैयार हो कर न आये तो ज़ोर से आवाज़ लगा कर उन्होंने बुलाया, "अजी सुनती हो! अरे जल्दी करो। बाज़ार बंद होने के बाद ही चलोगी क्या?"

असल में आज मिश्रा जी अपनी मीना के लिए योग्य वर ढूंढने शहर के प्रसिद्ध 'दूल्हा बाज़ार' जा रहे थे। बेटी की शादी की उम्र बीती जा रही थी और लड़का था की मिलने का नाम नहीं ले रहा था। हालांकि मीना इंजीनियर थी, पर थोड़ी साँवली थी और मिश्रा जी ज्यादा दहेज़ देने के समर्थन में न थे और बस ये ही बात आड़े आ रही थी। इस सिलसिले में अपने अतिशुभचिंतक रिश्तेदारों से हार मान चुकने के बाद, और रस्तोगी जी के सुझाव पर उन्होंने 'दूल्हा बाज़ार' जाने का मन बनाया था। रस्तोगी जी की लड़की के लिए भी तो लड़का उचित मूल्य पर वहीं से मिला था।

अब तक दोनों माँ-बेटी सम्पूर्ण साज-सज्जा और श्रृंगार करके आ चुकी थी। तीनों जन अपने मंज़िल के लिए निकल पड़े। जब वे बाज़ार के गेट पर पहुँचे तो पाया की उनके जैसे सैकड़ो लोग पहले से पहुँच चुके थे। भीड़ ऐसी थी की एक बार तो मिश्रा जी ने गलती से मिश्राइन का समझ कर किसी और स्त्री के हाथ पकड़ लिए थे। वो तो भला हो उस महिला का जिसने स्तिथि को समझा, वरना आज हमारे भोले-भाले मिश्रा जी बेवजह पिट-पीटा कर घर लौटते।

खैर काफी मशक्कत के बाद पूरे एक हज़ार एक रुपये का रजिस्ट्रेशन करा कर बाज़ार के अंदर घुसे। अंदर पहुँचे, तो आँखों पर भरोसा न हुआ। सैकड़ो अलग अलग काउंटर पर सूट-बूट में खड़े लड़के। उनके मैन्युफैक्चरर भी साथ में ही खड़े थे।अलग अलग प्रकार के लड़के। कोई लंबा, कोई नाटा, तो कोई गोऱा। सबके काउंटर पर लड़के का नाम, की-फ़ीचर्स और उसकी कीमत लिखी हुई थी। किसी पर पंद्रह लाख, किसी पर अट्ठारह लाख तो किसी पर पच्चीस और तीस। कुछ ने तो साथ में बड़े अक्षरों में लिखा था-'नॉन-नेगोशिएबल'। इतना रेट देख कर मिश्रा जी के तो होश उड़ गए। किसी तरह मिश्राइन के हिम्मत बढ़ाने के बाद उन्होंने पास से गुजरते हुए एक बन्दे, जो खुद बौराया सा फिर रहा था, से पूछा,
"भाई साहब, ये इंजीनियर लड़के कहाँ मिलेंगे?"

जवाब मिला,"आगे जा कर डॉक्टर डिपार्टमेंट से दायें।"

तीनों इंजीनियर डिपार्टमेंट पहुँचे। करीब पंद्रह काउंटर्स एक लाइन से लगे थे। सब के सब इंजीनियर। कोई बड़ी कंपनी में काम करता है, कोई बैच टॉपर, तो कोई अमरीका-रिटर्न। सबकी कीमत बीस से पच्चीस के करीब थी। काफी ढूंढने के बाद मिश्रा जी को अट्ठारह वाला एक दिखा और चल पड़े उधर।

"आइये आइये सर, आइये मैडम, आओ बेटी।", लड़के के पिता श्री ने आवाज दी,"सर मेरा बेटा इंजीनियर है। आइये देख लीजिये।"

मिश्रा जी ने लड़के के पिताजी को नमस्ते कहा, फिर दोनों परिवारों के सदस्यों के बीच भावपूर्ण 'नमस्ते' का आदान प्रदान हुआ।

मीना ने काउंटर पर नाम देखा-'मुकेश'। मीना की नज़रें मुकेश से मिली। दोनों ने मुस्कुरा कर एक दूसरे का अभिवादन किया। मुकेश की उम्र थोड़ी ज्यादा लग रही थी, शायद इसीलिए रेट कुछ कम था। इसी बीच मिश्राइन अपना माँ-धर्म निभाते हुए लड़के को हर एंगल से जांचने की ड्यूटी पूरी करने लगी।

"क्या करते हो बेटा?", मिश्रा जी ने मुकेश से पूछा।

"जी, ऐनआईटी से इंजीनियरिंग करके अभी एक प्राइवेट कंपनी में जॉब करता हूँ।", हलके धीरे स्वर में जवाब आया।

"अजी, आठ लाख का पैकेज मिलता है। बॉस काफी खुश रहता है इस से। अपने कॉलेज में भी टॉप करता था। काफी होनहार है हमारा बेटा। खुश रखेगा आपकी बेटी को।", माता जी बीच में टपक पड़ी।

"अच्छा है।", मिश्रा जी सिर्फ ये ही कह सके। फिर थोड़ा रुक कर पिताश्री से उन्होंने पूछा,"तो आपकी क्या डिमांड है?"

"देखिये, हमारा बेटा इंजीनियर है और अच्छी नौकरी करता है। ये देख कर ज्यादा कुछ नहीं अट्ठारह लाख दे दीजियेगा।"

"अट्ठारह लाख", मिश्रा जी सोच में पड़ गए। इतना तो उनका बजट ही न था।

"अच्छा तो आप ही बताइये, कितना दे सकते हैं आप?", पिताश्री ने पूछा।

"हमारी बेटी भी तो इंजीनियर है। हमने भी तो इसकी पढाई पर खर्च किया है। इसीलिए हम तो दस तक ही दे सकते हैं।"

"दस में तो न हो पायेगा। चलिए सोल्लह। अरे थोड़ी कोशिश तो कीजिये। इसी सीजन में शादी कर लीजिये।"

"हम दस से ज्यादा न कर पाएंगे।", मिश्रा जी ने साफ़ किया।

"मात्र दस। दस ही कर सकते हैं तो कोई बैंक वाला खोजिए। इंजीनियर क्यों खोज रहे हैं? इंजीनियर का ये ही रेट है।", झुंझला कर पिताश्री ने कहा। उनके मीठे बोल गायब हो चुके थे।

इस कदर हुई बेइज़्ज़ती से बिखर चुके मिश्रा जी ने खुद को समेटते हुए, और अपनी भी अकड़ दिखाते हुए, कहा,"हाँ हाँ, ढूंढ़ लेंगे। आपसे भी अच्छा।"

यहाँ भी डील न हो पायी। बात बनने से पहले ही फिर से बिगर चुकी थी। मिश्रा जी भी समझ चुके थे की यहाँ बात नहीं बनने वाली थी और उन्हें यहाँ से भी खाली हाथ ही लौटना था। अबतक वो भी थक चुके थे लेकिन पीछे हटने को तैयार न थे। अब इस बाज़ार में और समय न व्यर्थ करने मन बना कर, अपना सा मुँह बना कर उन्होंने मिश्राइन और मीना को घर चलने को कहा।

'दूल्हा बाज़ार' मिश्रा जी के लिए डूबते को तिनके का सहारा था लेकिन तिनके में भी छेद था।मीना का भी दुःख चेहरे से साफ़ झलक रहा था। तब मिश्रा जी ने हज़ार रुपये डूबने का दर्द दबा कर मीना को दिलासा देते हुए कहा,
"चलो बेटा, घर चल कर फ्लिपकार्ट पर ढूंढते हैं। एन्ड ऑफ़ सीजन सेल में थोड़ा डिस्काउंट भी मिल जायेगा।"