क्या आज दिवाली है?

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आकाश में आतिशबाजियां तो हो रही हैं,
धरा पर जगमग दीपों की आवलियाँ हैं,
मेवे मिठाइयों की मीठी खुशबू फैली है,
चहुँओर खुशियों का सा माहौल है,
फिर भी न जाने क्यों मेरा मन पूछ रहा,
"क्या आज दीवाली है?"

अपने घर के दिए की रौशनी में,
दूर किसी घर में अँधेरा देखता हूँ।
की शायद आज फिर एक इंसान जीवन से हार गया,
तब मेरा मन कचोट कर मुझसे पूछता है,
"क्या आज दीवाली है?"

घर की रंगोली निहारते हुए,
सामने वाली आँगन सूनी पाता हूँ।
और एक बूढी माँ,
पथराई आखों में,
अपने बेटे के लौटने की झूठी आस लिए,
रस्ता तकती है,
तब दिल रो कर पूछता है,
"क्या आज दीवाली है?"

कोने कोने में दीप जलाते हुए,
खबर आती है, की आज फिर,
सरहद पर मेरी खुशियों की ख़ातिर,
किसी घर का चिराग बुझ गया।
तब सिहरता हुआ मेरा मन पूछता है,
"क्या आज दीवाली है?"

मेरे पटाखों के शोर के बीच से,
किसी बच्चे के रोने की आवाज आती है।
जिसे शायद आज भी रोटी नसीब न हुई।
उसकी बेबस माँ भी,
जिंदगी को कोसते हुए,
उसे सीने से लगाती है,
तब मेरा मन कलप कर पूछता है,
"क्या आज दीवाली है?"

घर के बरामदे से,
कोई सड़क किनारे सोया दिखता है।
कई साल पुराने, मैले- कुचैले कपड़ो में,
न उस इंसान के पास छत है,
न आसरा,
और न मन में कोई आस ही है।
तब पसीजता हुआ दिल पूछता है,
"क्या आज दीवाली है?"

की खुशियों के बीच भी कही गम है,
लोगो की भीड़ में भी कही एक अकेलापन है,
पटाखों के शोर में भी एक सूनापन है,
इसी बीच तड़पता हुआ एक मेरा मन है,
जो बार बार मुझसे एक ही सवाल करता है,
"क्या आज दीवाली है?"
"क्या आज दीवाली है?"