माँ तेरी याद आती है

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सुबह जब घड़ी का अलार्म भी हार मान जाता है,
जब देर से आँख खुलती है,
जब भाग कर क्लास जाता हूँ,
और फिर भी लेट पहुँचता हूँ,
तब ऐ माँ, तेरी याद आती है।

जब क्लास से आने के बाद,
खाने को कोई नहीं पूछता,
और खुद लंबी कतारों में खड़ा होता हूँ,
जब बेमन से भिन्डी की सब्जी खाता हूँ,
तब ऐ माँ, तेरी याद आती है।

जब चोट लगने पर मरहम लगाने वाला कोई नहीं होता,
जब बीमार होने पर 'कैसा है' पूछने वाला कोई नहीं होता,
हर ग़म में, और हर दर्द में,
जब 'सब ठीक हो जायेगा' कहने वाला कोई नहीं होता ,
तब ऐ माँ, तेरी याद आती है।

जब कुछ गलत करने पर डांट लगाने वाला कोई नहीं होता,
जब कुछ अच्छा करने पर लाड़ करने वाला नहीं होता,
जब गिरने पर हिम्मत देने वाला कोई नहीं होता,
एक बुरे दिन के बाद सर पर प्यार से हाथ फेर कर,
पल में सारे दुःख दूर कर देने वाला कोई नहीं होता,
तब ऐ माँ, तेरी याद आती है।

और लोगों की इस भीड़ में भी,
जब खुद को अकेला पाता हूँ,
जब खुद की जिंदगी भी कचोटती है,
और एक अनजाना सा डर सताता है,
तब ऐ माँ, तेरी याद आती है।

जब रोज़ तेरी आवाज सुनता हूँ,
जब तू फोन पर भी मेरी फ़िक्र करती है,
और हर बात में मेरा ज़िक्र करती है,
जब ठीक से न खाने पर डांटती है,
तब ऐ माँ, तेरी याद आने लगती है।

जब सुबह होती है,
जब दिन ढलता है,
दिन के हर बीतते घड़ी के साथ,
जब तू मुझसे इतना दूर होती है,
तब ऐ माँ, हर पल,
हर पल तेरी याद आती है।
तेरी याद आती है।